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एकतालीसा बोल-८३
रहती है । शास्त्रकार मिश्र अवस्था को भी अज्ञानावस्था ही कहते हैं, क्योकि तीसरे गुणस्थान वाला जीव सत्य-असत्य का विवेक नही कर सकता। जो पीला सो सोना और जो सफेद सो दूध, ऐसा मानने से कभी धोखा खाने का अवसर आ जाता है। यह सच है कि सोना पीला होता है और दूध सफेद होता है, मगर सोना पीला होने के कारण सभी पीली वस्तुएं सोना नही कहला सकती। इसी प्रकार दूध सफेद होता है, एतावता सभी सफेद वस्तए दूध ., नही कहीं जा. सकती। तीसरे गुणस्थान मे जीव सब देवो, सब गुरुषों
और सब धर्मों को समान समझता है, यही उसका अज्ञान है । सत्य और असत्य की परख न कर सकने का कारण उसका अज्ञान ही है । इसी अज्ञान के कारण तीसरे गुणस्थान को अवस्था अज्ञानावस्था कहलाती है ।
जब आत्मा अपने गुण का थोडा-बहुत विकास करता है, तब वह चौथे गुणस्थान मे आता है । इस गुणस्थान मे आने पर उसे हेय और उपादेय का विवेक हो जाता है । जब आत्मा को यह विवेक हो जाता है कि कौनसी वस्तु हेय अर्थात् त्यागने योग्य है, कौनसी वस्तु उपादेय अर्थात् ग्रहण करने योग्य है और कौन वस्तु उपेक्षा करने योग्य है, तभी शास्त्रकार उसे ज्ञानी कहते हैं । इस अवस्था मे सम्यक्वी जीव के ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म का क्षय नहीं हो जाता परन्तु दर्शनमोहनीय कर्म का क्षयोपशम होने से वह वस्तुस्वरूप को यथातथ्य जानने लगता है। फिर भी चारित्रमोहनीय कर्म का उदय होने से वह. अपने ज्ञान को सक्रिय रूप-नही दे सकता । सम्यग्दृष्टि जीव को देव, गुरु