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८६-सम्यक्त्यपराक्रम (४)
समभाने के लिए । ज्ञानी पुगप आगे कहते है अगर वग्तुरवरुप समभाना हो तो वह सात नयो द्वारा समझना चाहिए। सात नयों द्वारा और साभिगी द्वारा ही वस्तु का ठीक-ठीक स्वरूप समझा जा सकता है । सात नयो द्वारा बस्तरवरूप किस प्रकार समझा जाता है, यह जानने के लिए विचार करो कि इस समय निगोद के जीव किस स्थिति में है ? जीव निगोद अवरथा मे भले हो, मगर किसी अपेक्षा से सिद्ध कहा जा सकता है और चोदहा गुगर यान में स्थित आत्मा को अपेक्षाभेद मे समागे भी कहा जा सकता है। इस प्रकार प्रत्येक वरत का रवरूप सात नयो द्वारा गमभना चाहिए । आत्मकल्याण करने के लिए शब्दादि का नयो का अवलम्बन करना चाहिए और परपरिक व्यवहार के लिए शुद्ध व्यवहार से काम लेना चाहिए। साधारणतया आरोप और विकल्प से भी वस्तु का स्वम्प समझा जा सकता, परन्तु वस्तु का आन्तरिक और बाह्य स्वरूप भलोभाति जानने के लिए सात नयो का ज्ञान प्राप्त कतना आवश्यक है। सात नय, सातभगी, निक्षप आदि द्वारा वस्तम्वरूप समझने का प्रयत्न करने पर भी वस्तुरवरा समझ में न आये तो हृदय में ऐगा विश्वास रखना चाहिए कि बीतराग जिन भगवान ने जा कुछ भी कहा है, वह सत्य ही है । इस प्रकार जिन भगवान के वचन में श्रद्धा रखने से भगवान् की श्राशा का आराधक बना जा सकता है ।
कहने का आशय यह है कि आत्मकल्याण करने के लिए इस प्रकार विचार करना चाहिए कि-'गुभ में अनन्त सामर्थ्य है । मगर उस सामथ्यं पर कर्मों का प्रावरण आ जाने से वह प्रच्छन्न हो गई है । जब कर्म-आवरण दूर हो