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एकतालीसवां बोल-८७
जाएगे तो आत्मा के लिए कोई भी कार्य असभव नही रह जायेगा।' भक्तजन इस प्रकार विचार करके ही परमात्मा की प्रार्थना करते हैं कि - 'हे प्रभो । तेरे नाम मे बहुत महिमा छिपी है । एक बार भी अगर तेरे नाम का शब्दनय द्वारा उच्चारण किया जाये और तेरे नाम पर अविचल श्रद्धा हो तो मेरी सग्रहनय की शक्ति भी एवभूत बन सकती है। - सग्रहनय की शक्ति भी एवभून बन सकती है, परन्तु उसके लिए प्रबल पुरुषार्थ और सक्रिय प्रयत्न करने की आवश्यकता है। क्रमशः प्रयत्न और पुरुपार्थ करने से आत्मा मे सग्रहनय की दृष्टि से रही हुई शक्ति भी एवभूत बन जाती है। कोई मनुष्य पहाड पर चढने के लिए छलाग मारना च हे तो वह नीचे गिरेगा, अगर सीढी दर सीढी चढेगा तो पहाड के अन्तिम शिखर तक पहुच जाएगा । इसी प्रकार क्रमपूर्वक आत्मा के गुणो का विकास करने से प्रात्मा चौदहवें गुणस्थान पर पहुच सकता है।
शुद्ध सग्रहनय की दृष्टि से सब आत्मा एक हैं । यद्यपि आत्माओ मे विकसित, अविकसित और अर्धविकसित ऐसे भेद हैं, परतु शुद्ध सग्रहनय- की दृष्टि से सब आत्माए एक हैं । उदाहरणार्थ मिट्टी से घडा, सुराही आदि अनेक बर्तन बनते हैं परन्तु मिट्टी की दृष्टि से तो भिन्न-भिन्न प्रतीत होने वाले बर्तन भी समान ही हैं । इसी प्रकार आत्मतत्त्व की दृष्टि से सब आत्माए एक हैं। मिट्टी के भिन्न-भिन्न पदाथ भी संग्रह की दृष्टि से-मिट्टी रूप से एक हैं, उसी • प्रकार जीवात्मा भिन्न-भिन्न होने पर भी सग्रहनय की दृष्टि से एक हैं । यही बात दृष्टि मे रखकर श्री स्यानागसूत्र में