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१०६-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
लिंग से प्रथम तो सुविहित साधु माना जाता है, दूसरे ज्ञान, दर्शन और चारित्र की भी रखा होती है। रजोहरण और मुखवस्त्रिका जीवो की रक्षा के लिये ही रखी जाती है । इस प्रकार सावुलिंग प्रशस्त है। साधुओ के पास जो भी वस्तु हो वह ज्ञान, दर्शन और चारित्र का रक्षा के लिए ही होनी चाहिए । जो चीज ज्ञान, दर्शन और चारित्र की घातक हो, ऐसी एक भी वस्तु साधु अपने पास नही रख सकता और न उस रखनी ही चाहिए ।
सुना है, वाकानेर के महाराजा साहब एक बार अपने समाज के नागजी स्वामी के पास आये। उन्होने पूछा'महाराजश्री । आपके पास क्या-क्या उपकरण हैं ?
नागजी स्वामी ने अपने सब उपकरण बतला दिये । स्वामीजी के उपकरण देख कर महाराज बहुत प्रसन्न हुए, और कहने लगे-'साधु के पास जितनी चीजें होनी चाहिए, उतनी ही आपके पास हैं।'
कहने का आशय यह है कि साधुलिग प्रशस्त है । अतएव माघु के पास गुण उत्पन्न करने वाली चीजे ही रह सकती हैं, अवगुण उत्पन्न करने वाली नही । साधु के पास ऐसी ही वस्तु रह सकती हैं कि कोई भी और कभी भी उन्हे देखना चाहे तो साधु को दिखलाने मे सकोच न हो। उदाहरणार्थ - अगर किसी साधु के पास दपण या कघा हो तो उसे दिखलाने मे साधु को सकोच होगा और ऐसी चीज देखकर लोग साधु का उपहाम करेंगे । दर्पण या कधा रखना साधु के लिए वर्ण्य है । इसके विपरीत अगर साधु के पास शास्त्र हो तो शास्त्र बतलाने मे साधु को मकोच नही होगा ! शास्त्र तो साधुता का चिन्ह और भूपण है । पूज्य