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६४-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
उत्तर-जीव प्रतिरूपता से लघुता (निश्चिन्तता) पाना _है और लघुशील जीव अप्रमत्त होता है। प्रशस्त तथा प्राकृ
तिक लिंग (तथा रूप का गुणयुक्त द्रव्यलिंग) धारण करता है तथा निर्मल सम्यक्न्वी और समिति सहित बनता है और सब जीवो का विश्वासपात्र, जितेन्द्रिय तथा विपुल तपश्चर्या से युक्त भी बनता है।
व्याख्यान इस प्रश्न पर विचार करने से पहले उसके शब्दार्थ पर विचार कर लेना उचित है। प्रतिरूपता' शब्द प्रति+ रूपता इस प्रकार दो शब्दो के मेल से बना है । 'प्रति' का साधारण अर्थ अनुकरण करना होता है । यहा रूप का अनुकरण समझना चाहिए । अतएव इस प्रश्न का अर्थ यह हुआ कि स्थविरकल्पी मुनि का वेश धारण कर लेने से जीव को क्या लाभ होता है ?
कल्प का अर्थ है--मर्यादा । मर्यादा भूमिका के अनुसार होती है । अर्थात् जो जैमा अधिकारी होता है, उसी के अनुसार उसकी मर्यादा होती है । अगर मर्यादा बधी न हो तो कर्त्ता का भी नाश होता है और कार्य का भी नाम होता है । इस कारण मर्यादा भूमिका के अनुसार ही वाँधी जाती है और मर्यादा का ही दूसरा नाम कल्प है। श्रीभगवतीसूत्र नामक पाँचवें जग मे साधुओ के लिए मुख्यतः पाच कल्प बतलाये गये हैं-(१) स्थितकल्प (२) अस्थितकल्प (३) स्थविरकल्प (४) जिनकल्प और (५) कल्पातीत ।
इन पाँच कल्पो का वर्णन अन्य अनेक सूत्रो मे तथा प्रथो में किया गया है । कल्पसूत्र तो कल्प बतलाने के लिए