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६२-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
कि सदनप्रयागती है।
इसी प्रकार सद्भावप्रत्याख्यान के प्रश्न में भी कत प्रयोग
और भावप्रयोग-दोनो का उपयोग हो सकता है। परन्तु यहाँ कर्तृ प्रयोग का उपयोग किया गया है अर्थात यह क्रिया भी आत्मा के करने से ही होती है । आत्मा न करे तो क्रिया हो कैसे ? यही बात बताने के लिए यह पूछा गया है कि सद्भाव-प्रत्याख्यान से जीवात्मा को क्या लाभ होता है ? यहा कर्तृ प्रयोग किया गया है, परन्तु यह क्रिया व्यवहार मे स्वत ही होती है ।
कोई बात तुम्हारी समझ मे न आये तो मुझसे पूछ सकते हो । मैं समझाने का प्रयत्न करूगा । फिर भी अगर समझ मे न आये तो सूत्र-सिद्धान्त पर विश्वास रखकर यही मानना चाहिए कि भगवान् की प्ररूपणा सत्य ही है । हम छद्मस्थ होने के कारण अमुक सत्य बात नहीं समझ पाते, यह हमारा दोष है।