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५८-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
गया न ? अगर यही कार्य योगसाधना द्वारा किया जाये तो ; योग की सिद्धि क्या रही ? सच्चा योग तो मन को एकाग्र करके काबू में कर रखना है। अगर मन काबू मे नही रहता तो समझना चाहिए कि वह योग ही सच्चा नही है । जो अपना मन एकाग्र करके काबू मे रखता है, उस योगी के लिए ससार मे ऐसा कोई कार्य नही, जो अशक्य हो । ऐसी कोई वस्तु नही जो उसके अधीन न हो, सच्चा योगी वही है जो साधनो का त्याग कर देता है । साधुओ ने संसार की सहायता का त्याग करके स्वतत्र बनने के लिए ही ससार का त्याग किया है । मन को एकाग्र करने के लिए तथा आत्मा को त्रिविध ताप से बचाने के लिए पर की सहायता का त्याग करना आवश्यक है ।।
आजकल साधुओ को भी जमाने की हवा लग गई है । इसी कारण उनमे यथोचित निश्चलता और निस्पृहता नजर नहीं आती । चित्त की चचलता का कारण जमाना बदलना बतलाया जाता है, पर जमाना किसने बदल दिया है, इस बात का विचार नही किया जाता। दोप, चाहे जमाने को दिया जाये, चाहे कि-ी और के सिर मढा जाये परन्तु साधुनो के लिए श्रेयस्कर यही है कि वे दूसरो की सहायता का त्याग करे ।।
यह बात दूसरी है कि कभी सच्ची बात भी दवा दी जाती है और झूठी बात को भी महत्व मिल जाता है, मगर सच्चाई अन्त मे सच्चाई ही सिद्ध होती है । अतः जमाने की किसी बुराई को जीवन में स्थान न देते हुए, दूसरो की सहायता त्याग कर, मन की चचलता दूर करके,