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उनचालीसवां बोल-५७
स्कार दिखाने में नही करना चाहिए । इतना ही नहीं, वरन् किसी दूसरे की सहायता भी नही लेनी चाहिए।
मैंने एक पुस्तक में पढ़ा था-एक आ .मी ने दूसरे से कहा- मुझे लब्धि प्राप्त हुई है और मैं उससे चमत्कार दिखा सकता है। दूसरे ने उत्तर दिया-कुछ चमत्कार दिखाओ तो मालूम हो कि तुम्हे कैसी लब्धि प्राप्त हुई है। लब्धि वाले मनुष्य ने रास्ता चलते एक मदोन्मत्त हाथी को योग-शक्ति द्वारा जडवत् बना दिया। यह दृश्य देख कर दूसग आदमी चकित रह गया । उसने एक तीसरे आदमी से यह आश्चर्यकथा कही । उसने दूसरे से कहा-बताओ तो सही, क्या प्राश्चर्य देखा है ? तब दूसरे आदमी ने कहा- अमुक आदमी ने अपनी योग-शक्ति के द्वारा रास्ता चलते मदोन्मत्त हाथी को जडवत् बना दिया । यह सुन कर तीसरे आदमी ने कहा इसमे इतना आश्चर्य करने की कौन-सी बात है ? यह काम तो एक दवा से भी हो सकता है। योगी ने योगसाधना करके भी अगर ऐसा चमत्कार दिखलाया तो योगसाधना का फल ही क्या हुआ ? हाथी को जडवत् बना देना कोई योग का चमत्कार नहीं है । दवा से भी यह काम हो सकता है और ऐसो मेरे पास भी है ।
म यह दवा ले जाओ और किसी मदोन्मत्त हाथी को पूछ पर थोडी-सी लगा देना । फिर देखना इस दवा का क्या असर होता है। दूसरे आदमी ने उस दवा का हाथी पर प्रयोग कर देखा । उसे विश्वास हो गया कि हाथी को जडवत् बना देने की क्रिया तो दवा के द्वारा भी हो सकती है ।
तीसरे आदमी ने उससे कहा-दवा के प्रयोग से मदोन्मत्त हाथी भी जडवत् बन सकता है, यह विश्वास तुम्हे हो