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६४-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
शब्दार्थ
प्रश्न-भगवन् । भोजन का प्रत्याख्यान करने से अर्थात् अनशन करके सथारा लेने से जीव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर-भोजन का प्रत्याख्यान करने से जीव सैकडो भवो को काट डालता है अर्थात् जीव अल्पससारी बनता है।
व्याख्यान
भक्त का सीधा-सादा अर्थ है - भात । भाथा' या 'भातु' शब्द भी इसी से बना है । भत्त या भक्त का अर्थ भोजन है । यहा भोजन के विषय मे ही प्रश्नोत्तर है। आहार के त्याग की बात सुनकर किसी को शका हो सकती है कि जैनधर्म तो दयाधर्म कहलाता है, फिर इस दयाधर्म मे भोजन के त्याग की बात कहना कहा तक उचित है ? आहार का त्याग करना तो प्राणो का त्याग करना है। आहारत्याग द्वारा प्राणत्याग के लिए कहना अनुचित ही है। इस प्रश्न के उत्तर मे शास्त्रकार का कथन है कि दूसरे की सहायता का त्याग करने वाला ही आहार का त्याग कर सकता है । जो पुरुष आत्मा और शरीर को भिन्न-भिन्न समझता है और इस भेदज्ञान के कारण जिसने शरीर की सहायता का भी त्याग कर दिया है, वही भोजम का त्याग कर सकता है। शास्त्र में कहा है - अपच्छिममरण अर्थात् जब मरण समीप आ जाये तब सथारा अर्थात् अनशनव्रत धारण किया जा सकता है ।