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उनचालीसवां बोल-५५
करना ही चाहिए । दूपरो की सहायता लेने वाला परतन्त्रता के कारण तथा अपनी निर्बलता के कारण सहायता लेता है । अगर अपनी निर्बलता दूर कर दी जाये तो फिर किसी की सहायता लिए बिना भी काम चल सकता है। दूसरो से जितनी सहायता ली जायेगी, उतनी ही परतन्त्रता बढेगी और एकाग्रता घटेगी । एकाग्रता भग होने से आत्मा के अनेक गुणो का नाश हो जाता है । अगर वृक्ष को बारबार उखाड कर एक जगह से दूसरी जगह रोपा जाये तो क्या वह फल-फूल दे सकेगा ? नही । इसका प्रधान कारण यह है कि उस वृक्ष मे एकाग्रता का गुण नही रह पाता । पालीयाद मे बार-बार भूकम्प के धक्के लगने से लोग भयभीत हो गये हैं और उनकी एकाग्रता भग हो गई है । जहा आधार मे ही चचलता हो वहा आधेय में एकाग्रता कैसे आ सकती है ? जैसे वृक्ष को बार बार एक जगह से दूसरी जगह उखाड-उखाड कर रोपने से उसका फल-फूल देने का गुण नष्ट हा जाता है, उसी प्रकार सकल्प-विकल्प से बार-बार मन को चचल करने से आत्मा की गुण-शक्ति घटती जाती है । जब तक मन की चचलता दूर नहीं होती, तब तक आत्मा मे सद्गुणो की स्थिरता भी नहीं रह सकती।
____ कुछ लोगों का कहना है कि शास्त्र मे जिन चमत्कारी का वर्णन निकला है, वे चमत्कार आज क्यो नही दिखाई देते ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि शास्त्र मे वणित चमत्कार तो सच्चे ही हैं मगर अपनी मन की चचलता के कारण वे आज दिखाई नहीं दे सकते । आज लोगो के मन