________________
५६ सम्यक्त्वपराक्रम (४)
मे कैसी चचलता आ गई है, इस बात का जरा विचार तो करो। तुम (श्रोता) लोग अभी यहा बैठे हो, पर तुममें से किसका मन कहा घूम रहा है, यह कौन कह सकता है ? मन में इतनी अधिक चचलता होने का कारण दूसरो की सहायता लेना ही है।
तुम समझते हो कि हम रेल, तार, टेलीफोन वायुयान आदि वैज्ञानिक सुख-साधनो की सहायता मिलने के कारण सुखी हैं। मगर इन सब सुख-साधनो के कारण तुम्हारे मन में कितनी और किस प्रकार की चचलता बढ़ गई है, यह विचार तो करो । इन सुख-साधनो के कारण तुम अपने को सुखी मानते हो, परन्तु जिनके पास यह साधन नही है और जिन्होने स्वेच्छापूर्वक इन साधनो की सहायता लेने का त्याग कर दिया है, वे साधु क्या दु.खी हैं ? साधु सुखसाधनों की सहायता नही लेते । जो सच्चे साधु है और जो यह मानते है कि भगवान् ने हमारी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए ही हमे ऐसे साधनो की सहायता न लेने की आज्ञा दी है, वे साप अपने आपको सब से ज्यादा सुखी मानते हैं।
कदाचित किसी साधु के मन मे यह धारणा हो कि आजकल चमत्कार को नमस्कार किया जाता है । अतएव हमारे पास किसी प्रकार की लब्धि हो तो अच्छा है । हम उस लब्धि का प्रयोग करके चमत्कार दिखा सकेगे। इस प्रकार विचार करने वाले साधु को सोचना चाहिए कि जब भगवान् ने हमे दूसरो की सहायता लेने का निषेध किया है तो फिर हम लब्धि का प्रयोग करके चमत्कार दिखला ही कैसे सकते हैं ? साघुरो को लब्धि का उपयोग चम