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अड़तीसवाँ बोल-३६
बारह वर्ष में शरीर के परमाणओ का पलट जाना कहते हैं, मगर ज्ञानीजन तो कहते हैं कि शरीर के परमाणु प्रतिक्षण पलटते रहते हैं । शरीर का यह परिवर्तन दो प्रकार से होता है - अनुकल और प्रतिकूल । उदाहरणार्थ--एक ही प्रकार का भोजन कभी अनुकल गुण पैदा करता है और कभी-कभी प्रतिकल गुण उत्पन्न करता है। अगर भोजन करने में सावधानी रखी जाये तो भोजन शरीर को अनुकूल गुण देता है--लाभ पहुचाता है, अन्यथा वही भोजन शरीर को हानिकारक हो जाता है। एक अनुभवी का कथन है कि भूख के कारण लोग इतने नही मरते, जितने अतिभोजन, अनिष्ट भोजन तथा अभक्ष्य भोजन के कारण मरते हैं । कितने ही लोग तप-उपवास तो कर लेते हैं परन्तु बाद में भोजन पर सयम रखना उनके लिए कठिन हो जाता है । भोजन के विषय में विवेक तथा सयम रखने वाले तथा रसास्वाद सम्बन्धी लोलुपता को जीतने वाले विरले ही दिखाई देते हैं। कुछ लोग ऐसे भी देखे जाते है जो तप करने के बाद भोजन करने में सावधानी नही रखते और जब परिणाम अच्छा नही आता तो कहते है कि तपश्चर्या से हानि हुई है । किन्तु यह बात हमेशा हृदय मे जमा रखनी चाहिए कि तपश्चर्या से त्रिकाल मे भी कभी हानि नहीं हो तकती। शरीर को जो हानि होती है, वह तपश्चर्या से नही, भोजन सम्वन्धी असावधानी के कारण ही होती है।
शरीर और काय मे अन्तर है और इसी कारण इन दोनो के विषय मे अलग-अलग प्रश्न किया गया है । काय शक्तिविशेप को कहते हैं और इन्द्रिया तथा मन जिसमे रहता है अथवा जिसका व्यवहार इन्द्रियो और मन द्वारा चलता