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अड़तीसवां बोल-४७
कर जाता है । प्रदेशी राजा भी ससार-सागर में गोते खा रहा था । परन्तु जब भगवान् केशीकुमार ने उसे धर्मनौका बताई और राजा ने उस नौका का आश्रय लिया, तो वह अधर्मी कहलाने वाला राजा भी धर्म-नौका का नाविक बन गया और ससारसागर को पार करने में समर्थ हुआ ।
तुम भी ससार -सागर मे गोते खा रहे हो। अगर धर्मनौका का आश्रय लोगे तोएक दिन तुम भी ससार सागर पार कर सकोगे।
गीता मे कुरुक्षेत्र और धर्मक्षेत्र के विषय मे उल्लेख किया गया है । गीता का रहस्य गम्भीर है। कुरुक्षेत्र का सामान्य अर्थ खराब क्षेत्र होता है । अर्थात् यह शरीर मलमूत्र से भरा होने के कारण कुरुक्षेत्र है। इस कुरुक्षेत्र को घमक्षेत्र बनाना चाहिए । अर्थात् आत्मा के उद्धार मे शरीर का उपयोग करना चाहिए । कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र बनाने के लिए हमेगा युद्ध करना पडता है । जो शरीर का गुलाम नही है, ऐसा आध्यात्मिक योद्धा इस कुरुक्षेत्र मे कैसे-कैसे आत्मिक साधनो से जीवनसग्राम मे अग्रसर होता है, इसके विषय मे श्री उत्तराध्ययन के नौवें अध्याय से कहा है:--
सद्ध नगरं किच्चा तवसंवरमग्गलं । खती निउणपागारं तिगुत्तं दुप्पसंधयं ।। धणु परक्कम किच्चा जीवं च इंरियं सया । धिइ च केयणं किच्चा सच्चेण पलिमंथए । तवनारायजुत्तेण भित्तूण कम्मकंचुयं । मुणी विगयसगामो भवाम्रो परिमुच्चए ।
उत्तरा० ६, २०-२१-२२