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४६-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
आत्मा बुद्धिगम्य नही हैं, इसी कारण उसके विषय मे 'नेति नेति' कहा गया है । असल मे पूर्ण वस्तु का वर्णन हो ही नहीं सकता। आज आत्मा का जो वर्णन मिलता है, वह अपूर्ण है। तिजोरी बडी होती है और चाबी छोटी सी । फिर भी इस छोटी-सी चाबी से तिजोरी खोली जा सकती है और उसमे रखा हुआ माल लिया जा सकता है, इसी प्रकार शास्त्र मे आत्मा रूपो तिजोरी को चाबो रूप जो भी थोड़ा-सा वर्णन मिलता है, उस वर्णन रूपी चाबी से आत्मा रूपी तिजोरी को खोलो तो मालूम होगा कि आत्मा कैसा है ? और उसमे कमी-कैसी शक्तिया छिपी
कहने का प्राशय यह है कि शरीर परवस्तु है और इसीलिए उसका प्रत्याख्यान किया जाता है। शरीर और आत्मा भिन्न-भिन्न है । यह भेदज्ञान हो जाये तो तुम भी राजा प्रदेशी की तरह अपना कल्याण कर सकते हो । प्रदेशी राजा भी आत्मा का स्वरूप नहीं जानता था । वह शरीर को ही आत्मा मान बैठा था और शरीरसुख को ही वास्त. विक सुख समझता था । इस विपरीत मान्यता के कारण वह उन्मार्गगामी हो गया था। परन्तु चित्त प्रधान प्रदेशी राजा का मार्गदर्शक बना और उसे सन्मार्ग पर लाया । राजा प्रदेशी जब सन्मार्ग पर आरूढ हुआ अथवा यो कहो कि जब उसे आत्मा और शरीर की भिन्नता का ज्ञान हुआ तब उसने नरक को भी स्वर्ग बना लिया। मिथ्याभिमान के कारण अनेक जीव ससार सागर मे गोते खा रहे हैं। मगर जब धर्मनौका का आश्रय मिलता है, तब धर्मनौका की सहायता से पतित आत्मा भी, ससार-सागर को पार