________________
उनचालीसवां बोल
सहाय प्रयाख्यान
शरीर- प्रत्याख्यान के विषय मे विचार किया जा चुका है । शरीर का त्याग करने केलिए आत्मा को परावलम्बन का त्याग करके स्वावलम्बी बनना चाहिए। अब इसी विषय मे विचार करना है । स्वावलम्बी बनने के लिये और परावलम्बन का परित्याग करने के लिए दूसरे की सहायता का त्याग करना श्रावश्यक है । दूसरे की सहायता का त्याग करने से आत्मा को क्या लाभ होता है इस विषय मे गौतम स्वामी, भगवान् से प्रश्न करते हैं
?
मूलपाठ
प्रश्न--सहाय पच्चक्खाणं भते । जीवे कि जणयइ ?
उत्तर--सहाय पच्चक्खाणेण एगीभाव जणयइ एगीभावभूए वि य ण जीवे एगग्ग भावेमाणे श्रव्यके अप्पकलहे अप्पकसाए श्रप्पतुतुमे सजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि
भवइ ॥
प्रश्न--भगवन्
―
1
शब्दार्थ
सहायता का त्याग करने से जीव