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३८-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
द्रव्येन्द्रिय निरर्थक होती है। इस प्रकार ज्ञानीजनों ने इन्द्रियो मे तथा काय में भिन्नता देखी है और इसी कारण योगप्रत्याख्यान के साथ ही शरीर-प्रत्याख्यान के विषय में अलग प्रश्न किया है।
अब यह देखना है कि जानीजन इन्द्रियदमन करने का जो कथन करते हैं सो इसका अर्थ क्या है ? इन्द्रियदमन करना अर्थात् क्या इन्द्रियो को नष्ट कर देना ? 'इन्द्रिय. दमन करो' का अर्थ इन्द्रियो को नष्ट कर दो। ऐसा नहीं है । इन्द्रियो को दुष्प्रवृत्ति मे से पृथक् करके सत्प्रवृत्ति मे नियोजित करना इन्द्रियदमन का अर्थ है। जैसे घोड़े को दमन करने के लिये कहा जाता है । मगर इसका अर्थ यह नहीं कि घोडे के पर काट दिये जाए । इसका अर्थ यह होता है कि घोडे को यह सिखाया जाये कि वह खराव चाल न चले । इसी प्रकार इन्द्रियो के दमन का अर्थ इन्द्रियो का नाग कर देना नही , वरन् इन्द्रियो को खराव मार्ग पर जाने से रोककर सत्प्रवृत्ति मे नियोजित करना है ।
कहने का आशय यह है कि शरीर और काययोग में नानियो ने थोडा अन्तर देखा है और इसी कारण योगप्रत्याख्यान के प्रश्न के बाद शरीरप्रत्याख्यान के विषय में प्रश्न किया गया है।
शरीर की व्याख्या करते हुए कहा गया है-'शीर्यते इति शरोरम ।' अर्थात जो प्रतिक्षण गीर्ण होता जाये, वह गरीर है। प्रतिक्षण पलटते रहना शरीर का स्वभाव है। आज के वैज्ञानिको का,भी कहना है कि बारह वर्ष में शरीर के समस्त परमाणु पलट जाते है। आज के वैज्ञानिक तो