________________
अड़तीसवां बोल-४३
कारण तथा प्रयत्न करने से बीज मे अच्छी उत्पादन शक्ति आ जाती है, उसी प्रकार अच्छे कर्म भी प्रमाद तथा असावधानी के कारण खराब कर्म बन जाते हैं और सावधानी तथा सतकता के कारण खराब कर्म भी अच्छे कर्म बन जाते है । विज्ञान द्वारा वृक्षो का सुधार किस प्रकार हो सकना है, इस विषय मे तुमने शायद सुना होगा । सुना है, गोभी का शाक पहले कटक होता था, परन्तु वैज्ञानिक रीति से उसमे सशो-- घन किया गया । तब कड़वा शाक भी मीठा बन गया । आम भी आजकल हरएक मौसम मे मिलता है। इसका क्या कारण है ? इसका कारण भी वैज्ञानिक सुधार ही है। शास्त्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रत्येक वस्तु का उपक्रम होता है। वह उपक्रम दो प्रकार का है-परिक्रम अर्थात् सुधार और दूसरा वस्तुविनाश । यह दोनो प्रकार का उपक्रम द्विपद, चतुष्पद तथा अपद इन तीनो का होता है । वृक्ष अपद है अत उसका भी उपक्रम होता है ।
भारतवर्ष मे आज वस्तुविनाश की ओर जितना लक्ष्य दिया जाता है, उतना परिक्रम-सुधार की ओर नही । इसके विपरीत विदेशी विद्वान विज्ञान द्वारा वस्तु का परिक्रम करते ही रहते हैं। सुना है, अमेरिका मे ले जाई गई भारतीय गाय प्रतिदिन १६० रतल दूध देती है । मगर भारत मे, भारत ही की गाय इतना दूध क्यो नहीं देती ? इसका प्रधान कारण यह है कि भारतीय लोगो का ध्यान वस्तु के । परिक्रम की ओर गया ही नही है । आज विदेशियो ने जो
वैज्ञानिक उन्नति की है, उसका मुख्य कारण यह है कि परिक्रम की ओर उनका लक्ष्य है। भारतीय अगर वैज्ञानिक ढग से वस्तु का परित्रम करें तो भारत भी उन्नत बन सकता है।