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४२-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
में तो बहुत ही छोटा होता है परन्तु उस छोटे-से बीज में ही विशालकाय वट वृक्ष के समस्त सस्कार विद्यमान रहते हैं । बाह्य दृष्टि से तो बीज मे वट वृक्ष का स्वरूप दिखाई नही देता परन्तु पृथ्वी-पानी आदि का सयोग प्राप्त होते ही वह छोटा-सा वीज वट वृक्ष का रूप धारण कर लेता है । इसी प्रकार कार्मण शरीर मे भी जीव के सब सस्कार मौजूद रहते है ।
अगर कोई पूछे कि कार्मण गरीर कहा है और उसमें जीव के सब सस्कार कहा रहते है ? ऐसा पूछने वाले को यही उत्तर दिया जा सकता है कि जब अष्टस्पर्शी वड के बीज मे रहे हुए वृक्ष के सस्कार दिखाई नही देते तो फिर चतुस्पर्शी कार्मण शरीर मे जीव के सम्कार कैसे देखे जा सकते है ? अतएव कार्मण शरीर को प्रत्यक्ष देखने का दुराग्रह अनुचित है। इसके सिवाय, अपनी स्थल दृष्टि से सूक्ष्म कार्मण शरीर तो दिखाई भी नहीं दे सकता ।
कहा जा सकता है कि जब पुरातन कर्मसस्कार हमारे साथ ही हैं तो फिर उन कर्मसस्कारो को नष्ट करने का पुरुषार्थ करने क्या लाभ ? इसका उत्तर यह है कि सक्रमण हो सकता है । जैसे वृक्ष में सुधार हो सकता है, उसी प्रकार कर्मसस्कार भी वदले जा सकते हैं । पुण्य-पाप कर्म मे भी सक्रमण हो सकता है । वर्म की रस और प्रकृति आदि का भी घात हो सकता है। बीज में अच्छी शक्ति मौजद होने पर भी असावधानी रखने के कारण वह शक्ति नष्ट हो जाती है अथवा खराब हो जाती है; और इसके विपरीत बीज मे अच्छी शक्ति न होने पर भी सावधानी के