________________
थोकडा संग्रह।
चक्षु इन्द्रिय बल प्राण ३ घ्राणेन्द्रिय बल प्राण ४ रसन्द्रिय बल प्राण ५ स्पर्शेन्द्रिय बल प्राण ६ मनः बल प्राण ७ वचन बल प्राण ८ काय बल प्राण ६ श्वासोश्वास बल प्राण १० आयुष्य बल प्राण ।
७ सातवें बोले शरीर पांच-१ औदारिक २ वैक्रिय ३ आहारिक ४ तैजस ५ कामण ।
८ पाठवें बोले 'योग पन्द्रह-१ सत्य मन योग २ असत्य मन योग ३ मिश्र मन योग ४ व्यवहार मन योग ५ सत्य वचन योग ६ असत्य वचन योग ७ मिश्र वचन योग ८ व्यवहार वचन योग ६ औदारिक शरीर काय योग १० औदारिक मिश्र शरीर काय योग ११ वैक्रिय शरीर काय योग १२ वैक्रिय मिश्र शरीर काय योग १३ पाहारिक शरीर काय योग १४ पाहारिक मिश्र शरीर काय योग १५ कार्मण काय योग । चार मनका, चार वचन का व सात काय का एवं पन्द्रह योग ।
नववें बोले उपयोग बारह । पांच ज्ञान का-१ मति ज्ञान २ श्रुत ज्ञान ३ अवधि ज्ञान ४ मनः पर्यव ज्ञान ५ केवल ज्ञान ।
७ जो नाश को प्राप्त होता हो या जिसके नष्ट होने से-अदृश्य होने से जीव का नाश माना जाता है उसे शरीर कहते हैं।
समन, वचन काया की प्रवृत्ति को-चपलता को (प्रयोग को)जोग (योग) कहते हैं।
जानने पहिचानने की शक्ति को उपयोग कहते हैं, यही जीव का लक्षण है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org