Book Title: Jainagama Thoak Sangraha
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 706
________________ (६६४) थोकडा संग्रह। असत् पर गति पर क्षेत्रापेक्षा असत् है पर गुण अपेक्षा असत् है वक्तव्य गुणस्थान आदि की व्याख्या हो सिद्ध के गुणों की जो व्या सकने से ख्या हो सके अव्यक्तव्य जो व्याख्या केवली भी नहीं सिद्ध के गुणों की जो व्या. कर सके ख्या नहीं हो सके २४ सप्त भंगी-१स्यात-अस्ति, २ स्यात् नास्ति ३ स्यात् अस्ति- नास्ति ४ स्यात् वक्तव्य ५ स्यात् अस्ति अवक्तव्य ६ स्यात् नास्ति अवक्तव्य ७ स्यात् अस्ति नास्ति प्रवक्तव्य । यह सप्त भंगी प्रत्येक पदार्थ (द्रव्य ) पर उतारी जा सक्ती है । इसमें ही स्याद्वाद का रहस्य भरा हुवा है। एकेक पदार्थ के अनेक अपेक्षा से देखने वाला सदा सम भावी होता है। दृष्टान्त के लिये सिद्ध परमात्मा के ऊपर सप्त भंगी उतारी जाती है। १ स्यात अस्ति-सिद्ध स्वगण अपेक्षा है। २ स्यात् नास्ति-सिद्ध पर गुण अपेक्षा नहीं (परगुणों का अभाव है) (३) स्यादास्ति-नास्ति-सिद्धों में स्वगुणों की अन्ति और परगुणों की नास्ति है। (४) स्यादवक्तव्य-प्रास्ति-नास्ति युगपत् है तो भी एक समय में नहीं कही जा सकती है । (५) स्यादास्ति अवक्तव्य- स्वगुणों की आस्ति है तो मी १ समय में नहीं कही जा सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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