Book Title: Jainagama Thoak Sangraha
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 742
________________ ( ७३० ) २ उपयोग, ६ ज्ञान ( ३ ज्ञान, ३ अज्ञान ) ३ दर्शन, १ असंयम चारित्र, १ वेद नपुसंक एवं २६ बोल | (११) १० भवन पति १ व्यन्तर एवं ११ दण्डक में ३१ बोल पावे - नारकी के २६ बोलों में १ स्त्री वेद और १ तेजोलेश्या बढाना | - ( ३ ) ज्योतिषी और १ - २ देवलोक में २८ बोल ऊपर में से ३ अशुभ लेश्या घटाना । (१०) तीसरे से बारहवें देव लोक तक २७ बोलऊपर में से १ स्त्री वेद घटाना । ( १ ) नव ग्रथिवेक में २६ बोल - ऊपर में से १ मिश्र दृष्टि घटानी । थोडा संग्रह | ( १ ) पांच अनुत्तर विमान में २२ बोल । १ दृष्टि और ३ अज्ञान घटाना । + (३) पृथ्वी, अप, वनस्पति में १८ बोल । १ गति, १ इन्द्रिय, ४ कषाय, ४ लेश्या, १ योग, २ उपयोग, २ अज्ञान, १दर्शन, १ चारित्र, १ वेद एवं १८ । (२) तेउ - वायु में १७ बोल - ऊपर में से १ तेजो लेश्या घटाना । ( १ ) बेइन्द्रिय में २२ बोल - ऊपर के १७ बोलों में से १ रसेन्द्रिय, १ वचन योग, २ ज्ञान, १ दृष्टि एवं ५ बढ़ाने से २२ हुवे | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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