Book Title: Jainagama Thoak Sangraha
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 746
________________ ( ७३४ ) थोडा संग्रह | * बारह प्रकार का तप ( श्री उबवाईजी सूत्र ) तप १२ प्रकार का है । ६ बाह्य तप ( १ अनशन २ उनोदरी ३ वृत्तिसंक्षेप ४ रस परित्याग ५ ] कात्रा क्लेश ६ प्रति संलिनता) और ६ आभ्यन्तर तप ( १ प्रायश्चित २ विनय ३ वैयावच्च ४ स्वाध्याय ५ ध्यान ६ कारसग्ग | ) १ अनशन के २ भेद - १ इत्वरीक अल्प काल का तप २ अवकालिक- जावजीव का तप । इत्वरीक तप के अनेक भेद हैं- एक उपवास, दो उपवास यावत् वर्षी तप ( १ वर्ष तक के उपवास ) 1 वर्षी तप प्रथम तीर्थ - कर के शासन में हो सकता है । २२ तीर्थंकर के शासन में८ माह और चरम ( अन्तिम ) तीर्थकर के समय में ६ माह उपवास करने का सामर्थ्य रहता है । अवकालिक - ( जावजीव का ) अनशन व्रत के २ भेद १ एक भक्त प्रत्याख्यान और २ पादोपगमन प्रत्याख्यान । एक भक्त प्रत्या० के २ भेद - ( १ ) व्याघात उपद्रव आने पर अमुक अवधि तक ४ आहार का पच्चखाण करे जैसे अर्जुनमाली के भय से सुदर्शन शेठ ने किया था । ( २ ) निर्व्याघात - ( उपद्रव रहित ) के दो भेद ( १ ) जावजीव तक ४ आहार का त्याग करे ( २ ) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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