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साधु की १२ पडिमा पालना, आतापना लेना वस्त्र रहित रहना, शीत-उष्णता ( तड़का ) सहन करना परिषद्द सहना । थूकना नहीं, कुल्ला करना नहीं, दान्त धोने नहीं, शरीर की सार संभाल करना नहीं । सुन्दर वस्त्र पहिरना नहीं, व ठोर वचन गाली, मार प्रहार सहना, लोच करना नंगे पैर चलना आदि ।
६ प्रति संलिनता तप के चार भेद - १ इन्द्रिय संलिनता २ कपाय संलिनता, ३ योग संलि० ४ विविध शयनासन संलि० (१) इन्द्रिय संलिनता के ५ भेद( पांचों इन्द्रियों को अपने २ विषय में राग द्वेष करते रोकना ) (२) कपाच संलि० के चार भेद - १ क्रोध घटा कर क्षमा करना । २ मान घटा कर विनीत बनना ३ माया को घटा कर सरलता धारण करना ४ लोभ को घटा कर संतोष धारण करना । (३) योग प्रति संलिनता के तीन भेद - मन, वचन, काया को बुरे कामों से रोक कर सन्मार्ग में प्रवर्तावना । (४) विविध शयासन सेवन प्रति संलि० के अनेक भेद हैं- उद्यान चैत्य, देवालय, दुकान, वखार, श्मशान, उपाश्रय आदि स्थानों पर रह कर पाट, पाटले, बाजीद, पाटिये, बिछाने, वस्त्र - पात्रादि फ्रासुक स्थान अंगीकार करके विचरे ।
बारह प्रकार का तप |
अभ्यन्तर तप का अधिकार
१ प्रायश्चित के १० मेद्र - १ गुर्वादि सन्मुख
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