________________
बारह प्रकार का तप।
( ७३६)
व्यवहार विनय के ७ भेद-१ गुर्वादि के विचार अनुसार प्रवर्ते, २ गुरु आदि की आज्ञानुसार वर्ते ३ भात पानी आदि लाकर देवे ४ उपकार याद कर के कृतज्ञता पूर्वक सेवा करे ५ गुवादि की चिन्ता-दुख जान कर दूर करने का प्रयत्न करे ६ देश काल अनुसार उचित प्रवृत्ति करे ७ निंद्य (किसी को खराब लगे ऐसी) प्रवृत्ति न करे
३ यावच्च (सेवा) तप के १० भेद-१आचार्य की २ उपाध्याय की ३ नव दीक्षित की ४ रोगी की ५ तपस्वी की ६ स्थविर की ७ स्वधर्मी की ८ कुल गुरू की ह भणावच्छेक की १० चार तीर्थ की वैयावच्च (सेवा-भक्ति ) करे।
४ स्वाध्याय तप के ५ भेद-१ सूत्रादि की वांचना लेवे व देवे २ प्रश्नादि पूछकर निर्णय करे ३ पढे हुवे ज्ञान को हमेशा फेरता रहे ४ सूत्र-अर्थ का चितवन करता रहे ५ परिषदा में चार प्रकार की कथा कहे।
५ ध्यान तप के ४ भेद-पात ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान ।
बात ध्यान के चार भेद-१ अमनोज्ञ (अप्रिय) वस्तु का वियोग चिंतवे २ मनोज्ञ (प्रिय ) वस्तु का संयोग चिंतये ३ रोगादि से घबराई ४ विषय-भोगों में भासक्त बना रहे उसकी गृद्धि से दुख होवे । चार लक्षण.. १ आक्रंद करे २ शोक करे ३ रुदन करे ४ विलाप करे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org