Book Title: Jainagama Thoak Sangraha
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 750
________________ ( ७३८ ) थोकडा संग्रह | पाप प्रकाशे २ गुरु के बताये हुवे दोष और पुनः ये दोष नहीं लगाने की प्रतिज्ञा करे ३ प्रायश्चित प्रतिक्रमण करे ४ दोषित वस्तु का त्याग करे ५ दश, वीश, तीरा, चालीश लोगस्स का काउसग्ग करे ६ एकाशन, आयंबील यावत् छमासी तप करावे, (७) ६ छमास तक की दीक्षा घट वे ८ दीक्षा घटा कर सब से छोटा बनावे ६ समुदाय से बाहर रख कर मस्तक पर श्वेत कपड़ा ( पाटा ) बन्धवा कर साधुजी के साथ दिया हुआ। तप करे १० साधु वेष उतरवा कर गृहस्थ वेष में छमाह तक साथ फेर कर पुनः दीक्षां देवे | २ विनय के भेद - मतिज्ञानी, श्रुत ज्ञानी अवधि ज्ञानी, मनः पर्यव ज्ञानी, केवल ज्ञानी आदि की अशातना करे नहीं, इनका बहुमान करें, इनका गुण कीर्तन कर के लाभ लेना । यह ज्ञान विनय जानना | चारित्र विनय के ५ भेद-पांच प्रकार के चारित्र वालों का विनय करना । योग विनय के ६ भेद-मन, वचन, काया ये तीनों प्रशस्त और अप्रशस्त एवं ६ भेद है । अप्रशस्त काय विनय के ७ प्रकार अयत्ना से चले, बोले, खड़ा रहे, बैठे, सोवे, इन्द्रिय स्वतन्त्र रक्खे, तथा अंगोपांग का दुरुपयोग करे ये सातों यत्ना से करे तो अप्रशस्त विनय और यस्ता पूर्वक प्रवर्तावे सो प्रशस्त विनय । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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