Book Title: Jainagama Thoak Sangraha
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

View full book text
Previous | Next

Page 747
________________ ( ७३५ ) नित्य सेर, आधासेर तथा पाव सेर दूध या पानी की छूट रख कर जावजीव का तप करे । बारह प्रकार का तप । पादोपगमन - ( वृक्ष की कटी हुई डाल समान हलन चलन किये बिना पड़े रहे । इस प्रकार का संथारा करके स्थिर हो जाना ) अनशन के दो भेद - १ व्याघात ( अग्निसिंहादि का उपद्रव आने से ) अनशन करे जैसे सुकोशल तथा अति सुकुमाल मुनियों ने किया । २ निर्व्याघात ( उपद्रव रहित ) जावजीव का पादोपगमन करे | इनको प्रति क्रमणादि करने की कुछ आवश्यकता नहीं एक प्रत्याख्यान अनशन वाला जरुर करे । २ उनोदरी तप के दो भेद द्रव्य उनोदरी और भाव उनोदरी द्रव्य उनोदरी के २ भेद (१) उपकरण उनोदरां ( वस्त्र, पात्र और इष्ट वस्तु जरुरत से कम रक्खे - भोगवे ) २ भाव उनादरी के अनेक प्रकार है । यथा अल्पाहारी ८ कवल ( कवे ) आहार करे, अल्प अर्ध उनोदरी वाले १२ कवल ले, अर्ध उनोदरी करे तो १६ कवल ले, पौन उनोदरी करे तो २४ कवल ले, एक कवल उनोदरी करे तो ३१ कवल ले ३२ कवल का पूरा आहार समझना इस से जितने कवल कम लेवे उतनी ही उनोदरी होवे उनोदरी से रसेंन्द्रिय जीताय, काम जीताय, निरोगी होवे । भाव उनोदरी के अनेक भेद - अल्प क्रोध, अल्प For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756