Book Title: Jainagama Thoak Sangraha
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 745
________________ अजीव परिणाम । । ७३३) wwaranaamanar.nani.nn ४ भेद-पुद्गल पांच प्रकार से भेदे जाते हैं (भेदाते हैं) (१) खंडा भेद (लकड़ी पत्थर आदि के टुकड़े समान (२) परतर भेद (अवरख समान पुड़) (३) चूर्ण भेद (अनाज के आटे समान) (४) उकलिया भेद (कठोल की फलियां सूख कर फटे उस समान ) (५) अणनूडया ( तालाब की सूखी मिट्टी समान ) __ ५ वर्ण-मूल रंग पांच है-काला नीला लाल, पीला, सफेद, इन रंगों के संयोग से अनेक जाति के रंग बन सकते हैं जैसे-बादामी, केशरी, तपखीरी, गुलाबी, खाखी पादि। ६ गंध-सुगन्ध और दुर्गन्ध (ये दो गन्ध वाले पुद्गल होते हैं। ७ रस-मूल रस पांच है-तीखा, कड़वा कषायला, खट्टा, मीठा और क्षार (नमक का रस ) मिलाने से षट् रस कहलाते हैं। ___८ स्पर्श-आठ प्रकार का है कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, रुक्ष, स्निग्ध । अगुरु लघु-न तो हलका और न भारी जैसे परमाणु प्रदेश, मन भ षा, कार्मण शरीर आदि के पुद्गल । १० शब्द-दो प्रकार के हैं-सुस्वर और दुःस्वर । ॥ इति अजीव परिणाम सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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