Book Title: Jainagama Thoak Sangraha
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 712
________________ ( ७००) थोकडा संग्रह। कम क्षय हुवे हैं । विकलेन्द्रिय केवल व्यवहार भाषा संसार रूप ही बोलते हैं और १६ दण्डक के जीव चारों ही प्रकार की बोलते हैं। (१७) जीव जिस प्रकार की भाषा रूपमें द्रव्य ग्रहण करते हैं वे उसी प्रकार की भाषा बोलते हैं । (१८) वचन द्वार-बोलने वाले व्याख्यानदाताओं को नीचे का वचन ज्ञान करना (जानना ) चाहिए एक वचन द्वि वचन, बहु वचन; स्त्री वचन, पुरुष वचन, नपुसक वचन, अध्यवसाय वचन, वर्ण ( गुण, कीर्तन ), अवर्ण (अवर्ण वाद), वणोवणे (प्रथम गुण करने के बाद अवणे वाद), अवर्ण वर्ण ( प्रथम अवगुण करके पश्चात गुण कहना ), भूत-भविष्य-वर्तमान काल वचन, प्रत्यक्ष-परोक्ष वचन, इन १६ प्रकार के सिवाय विभक्ति तद्धित, धातु, प्रत्यय आदि का ज्ञाता होवे। (१६) शुभ इरादे से चार प्रकार की भाषा बोलने वाला आराधक हो सकता है । (२०) चार भाषा के ४२ नाम हैं. सत्य भाषा के १० प्रकार-१ लोक भाषा २ स्थापना सत्य (चित्रादि के नाम से कहलाने वाली] ३ नाम सत्य [गुण होवे या नहीं होवे जो नाम होवे वो कहना ] ४ रूप सत्य [ तादृश रूप समान कहना जैसे हनुमान- समान रूप पुतले को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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