Book Title: Jainagama Thoak Sangraha
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 730
________________ (७१८) थाकड़ा संग्रह। १ अपर्याप्ता एवं ३ देवी के ) सवे से कम ऊध्र्व लोक में उनो ऊर्ध्व तीर्छ लोक में असंख्यात गुणा, उनसे तीनों लोक में संख्यात गुणा उनसे अधं तीर्छ लोक में असंख्यात गुणा उनसे तीचे लोक में असंख्यात गुणा उनसे अधो लोक में असंख्यात गुण।।। ४ बोल ( तियेचनी, समुच्चय देव, समुच्चय देवी, पंचेन्द्रिय; के पर्याप्ता ) का अल्प बहुत्व मंत्र से कम ऊध लोक में उनसे ऊर्ध्व- लोक में असंख्यात गुणा उनसे तीनों लोक में संख्यात गुणा उनसे अधो-ती लोक में संख्यात गुणा उनस अधा लोक में संख्यात गुणा उनसे ती लोक में ३ बोल संख्यात गुणा और पंचेन्द्रिय का पयोप्ता असंख्यात गुणा । एवं तीन मनुष्यनी के ) बोल-सर्व से कम तीनों लोक में, उनसे ऊध्वे-ती लोक में मनुष्य असंख्यात .णा मनु व्यनी संख्यात गुणी उनसे अधो-तीर्छ लोक में संख्यात गुणा उनसे ऊध्वे लोक में संख्यात गुणा उनसे अधो लोक में संख्यात गुणा उनसे तीर्थ लोक में संख्यात गुणा । ६ बोल-व्यन्तर के (समु० व्यन्तर देव पयःप्ता अपर्याप्त एवं ३ देवी के ) बोल-सर्व से कम ऊर्ध्व लोक में, उनसे ऊर्ध्व ती, लोक में असंख्यात गुणा उनसे तीन लोक में संख्यात गुणा उनसे अधो-ती लोक में असंख्यात गुणा उनसे अधो लोक में संख्यात गुणा उनसे ती लोक में संख्यात गुणा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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