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आयुष्य के १८०० भांगा।
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* आयुष्य के १८०० मांगा
(श्री पन्नवणाजी सूत्र, पद छठ्ठा) पांच स्थ वर में जीव निरन्तर उत्पन्न होवे और इनमें से निरन्तर निकले १६ दण्डक में जीव सान्तर और निर. न्तर उपजे और सान्तर तथा निरन्तर निकले सिद्ध भगवान सान्तर और निरन्तर उपजे परन्तु सिद्ध में से निकले नहीं ४ स्थावर समय समय असंख्याता जीव उपजे और असंख्याता चवे, वनस्पति में समय समय अनन्ता जीव उपजे और अनन्त चवे १६ दण्डक सय समय १-२ ३ यावत संव्याता, असंख्याता जीव उपजे और चवे । सिद्ध भगवाट १-२-३ जाव १०८ उपजे परन्तु चवे नहीं। ___आयुष्ष का बन्ध किस समय होता है ? नारकी, देवता, और युगलिये आयुष्य में जब ६ माह शेष रहे तब पर भव का आयुष्य बान्धे शा जीव दो प्रकार बान्धे-- सोपक्रमी और निरुपक्रमी । निरुपक्रमी तो नियमा तीसरा भाग आयुष्य का शेष रहने पर बान्धे और सोपक्रमी
आयुष्य के तीसरे, नववे, सत्तावीश वें, एकाशीवें,२ ४३३ भाग में तथा अन्तिम अन्तर्मुहूत में परभव का आयुष्य बान्धे आयुष्य कर्म के साथ साथ ६ बोल ( जाति, गति, स्थिति,अवगाहना,प्रदेश और अनुभाग) . बन्ध होता है।
समुच्चय जीव और २४ दण्डक के एकेक जीव ऊपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org