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थोकडा संग्रह।
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भाषा-पद (श्रीपन्नवणा सूत्र के ११वें पद का अधिकार )
(१) भाषा जीव को ही होती है । अजीव को नहीं होती किसी प्रयोग से (कारण से ) अजीव में से भी भाषा निकलती हुई सुनी जाती है । परन्तु यह जीव की ही सत्ता है।
(२) भाषा की उत्पत्ति-औदारिक, वैक्रिय, और श्राहारिक इन तीन शरीर द्वारा ही हा सकती है।
(३) भाषा का संस्थान-वज्र समान है भाषा के पुद्गल वज्र संस्थान वाले हैं।
(४) भाषा के पुद्गल उत्कृष्ट लेक के अन्त ( लोका. न्त) तक जाते हैं।
(५) भाषा दो प्रकार की है-र्याप्त भाषा ( सत्य असत्य ) और अपर्याप्त भाषा (मिश्र और व्यवहार भाषा)
(६) भाषक-समुच्चय जीव और त्रस के १६ दण्डक में भाषा बोली जाती है । ५ स्थावर और सिद्ध भगवान प्रभाषक हैं। भाषक अल्प हैं । अभाषक इन से अनन्त हैं।
(७) भाषा चार प्रकार की है--सत्य, असत्य, मिश्र और व्यवहार भाषा १६ दण्डकों में चार ही भाषा तीन दण्डकों (विकलेन्द्रिय ) में व्यवहार भाषा है ५ स्थावर में भाषा नहीं।
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