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श्रीगुणस्थान द्वार ।
(२०३)
वेद नपुंसक वेद एवं २१ प्रकृति का क्षयोपशम करे । तब जीव नववे गुणस्थान आवे । इस जीव को किस गुण की प्राप्ति होवे ? उत्तर- यह जीव जीवादिक नव पदार्थ तथा नोकारसी आदि छमासी तप द्रव्य से, क्षेत्र से,काल से,भाव से निर्विकार अमायी विषय निरखंछा पूर्वक जाने सर्दहे परूपे, फरसे। यह जीव जघन्य उसी भव में उत्कृष्ट तीसरे भव में मोक्ष जावे। सर्वथा प्रकार से निवर्ता नहीं केवल अंश मात्र अभी संपराय फ्रिया शेष रही उसे अनियट्टि बादर गुणठाणा कहते हैं । आठवां नवमां गुण ठाणा [ गुणस्थान ] के शब्दार्थ बहुत ही गम्भीर है अतः इन्हे पंचसग्रहादिक ग्रंथ तथा सिद्धान्त में से जानना।
१० सूक्ष्म संपराय गुणस्थान:-उपरोक्त २१ प्रकृति और १ हास्य २ रति ३ अरति ४. भय ५ शोक ६ दुगंछा एवं २७ प्रकृति का क्षयोपशम करे इस जीव को किस गुण की प्राप्ति होवे । उत्तर-यह जीव द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से जीवादिक नव पदार्थ तथा नोकारसी आदि छमासी तप, निरभिलाष, निर्वछूक, निर्वदकतापूर्वक, निराशी, अव्यामोह अविभ्रमतापूर्वक जाने सदहे परूपे फरसे। यह जीव ज.उसी भव में उ.तीसरे भव में मोक्ष जावे । सूक्ष्म अर्थात थोडीसी-पतलीसी-संपराय क्रिया शेष रही अतः इसे सूक्ष्म संपराय गुणस्थान कहते हैं।
११ उपशान्त मोहनीय गुणस्थान:-उपरोक्त २७ प्रकृति और संज्वलन का लोभ एवं २८ प्रकृति उपशमावे
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