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श्री गुणस्थान द्वार |
(2013)
२ गादिया सपञ्जवसिया अर्थात् जिन मिध्यात्व की आदि नहीं परन्तु अन्त है । भव्य जीव के मिथ्यात्व
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श्री । ३ सादिया सपञ्जसिया अर्थात् जिस मिथ्याल की आदि भी है और अन्त भी है । पडिवाई समदृष्टि के मिथ्यात्व श्री । इसकी स्थिति जघन्य अन्त मुहूर्त उत्कृष्ट अर्द्ध पुद्गल परावर्तन में देश न्यूत | बाद में अवश्य समकित पाकर मोक्ष जावे । दूसरे गुण ० की स्थिति जघन्य एक समय की उ० ६ अवलिका व ७ समय की । तीसरे गुण की स्थिति ज. उ. अन्तर्मुहूर्त की चौथे गुण की स्थिति ज अन्तर्मुहूर्त की उ०६६ सागरोपम जाजेरी । २२ सागरोपम की स्थिति से तीन बार बारहवें देवलोक में उपजे तथा दोवार अनुत्तर विज्ञान में ३३ सागरोपम की स्थिति से उपजे ( एवं ६६ सागरोपम ) और तीन करोड़ पूर्व अधिक मनुष्य के भव आश्री जानना । पांचवें, छडे, तेरहवें गुण की स्थिति ज अन्तर्मुहूते उ० देश न्यून ( उणी ) ८ || वर्ष न्यून एक करोड़ पूर्व की, सातवें से इग्यारहवें तक ज० १ समय उ० अन्तर्मुहूर्त बारहवें गुण की स्थिति ज० उ० अन्तर्मुहूर्त चौदहवें गु० की स्थिति पांच लघु ( हृस्व ) स्वर ( अ, इ, उ, ऋ, लु, ) के उच्चारण के काल प्रमाणे जानना ।
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४ क्रिया द्वार
पहेले तीसरे गुणस्थाने २४ किया पावे इरियावाहिया
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