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( ३७०)
थोकडा संग्रह।
Ka प्रदल परावते
भगवती सूत्र के १२ वें शतक के चोथे उद्देशे में पुद्गल परावत्त का विचार है सो नीचे अनुसार ।
गाथा नाम'; गुण'; ति सख्खं ; ति ढाणं'; काल'; कालोवमंच' काल अप्प बहु'; पुग्गल मझ पुग्गल पुग्गल करणं अप्पबहु।
पुद्गल परावर्त समझाने के लिये नव द्वार कहते हैं।
१ नाम द्वार-१ औदारिक पुद्गल परावर्त २ वैक्रिय पुद्गल परावर्त ३ तैजस पुद्गल परावर्त ४ कार्मण पुद्गल परावर्त्त ५ मन पुद्गल परावर्त ६ वचन पुद्गल परावर्त ७ श्वासोश्वास पुद्गल परावर्त ।
२ गुण द्वार-पुद्गल परावर्त किसे कहते हैं ? इसके कितने प्रकार होते हैं ? इसे किस तरह समझना ? आदि सहज प्रश्न शिष्य के द्वारा पूछे जाते है तब गुरु उत्तर देते हैं:-इस संसार के अन्दर जितने पुद्गल हैं उन सबों को जीव ने ले ले कर छोड़े हैं । छोड़ कर पुनः पुनः फिर ग्रहण किये पुल परावर्त शब्द का यह अर्थ है कि पुद्गल सूक्ष्म रजकण से लग कर स्थूल से स्थूल जो पुद्गल हैं उन सबों के अन्दर जीव परावर्त्त-समग्र प्रकार से फिर चुका है, सर्व में भ्रमण कर चुका है।
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