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नारकी का नरक वर्णन ।
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१८ क्षेत्र वेदना द्वार-दश प्रकार को है-अनन्त क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दाह (जलन), ज्वर, भय, चिंता, खुजली, और पराधीनता, एक से दूसरी में, दूसरी से. तीसरी में (इस प्रकार) अनन्त अनन्त गुणो वेदना सातवीं नरक तक है नरक के नाम के अनुसार पदार्थों की भी अनन्ती वेदना है।
१६ देव कृत वेदना-१.२.३ नरक में परमाधामी देव पूर्व कृत पाप याद करा २ कर विविध प्रकार से मार-दुख देते हैं शेष नरक के जीव परस्पर लड़ २ कर कटा करते हैं।
२० वैक्रिय द्वार-नेरिये खराब तीक्ष्ण) शस्त्र के समान रूप बनाते हैं अथवा वज्रमुख कीड़े रूर होकर अन्य नेरियों के शरीरों में प्रवेश करते हैं अन्दर जाने बाद बड़ा रूप बना कर शरीर के टुकड़े २ कर डालते हैं।
२१ अल्प बहुत्व द्वार सर्व से कम सातवीं नरक के नरिये, उससे ऊपर ऊर के असंख्यात गुणे नेरिये जानना, शेष विस्तार २४ दण्डकादि थोकड़ों में से जानना।
॥ इति नारकी का वर्ण। सम्पूर्ण ।
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