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थेकडा संग्रह |
वाण व्यन्तर विस्तार
वाण व्यन्तर के २१
द्वार - १ नाम २ वास ३ नगर ४ राजधानी ५ सभा ६ व ७ वस्त्र ८ चिन्ह ६ इन्द्र १० सामानिक ११ आत्म रक्षक १२ परिषद १३ देवी १४ अनीका १५ वैक्रिय १६ अवधि १७ परिचारण १८ सुख १६ सिद्ध २० भव २१ उत्पन्न द्वारं ।
१ नाम द्वार - १६ व्यन्तर- १ पिशाच २ भूत ३ यक्ष ४ राक्षस ५ किन्नर ६ किंपुरुष ७ महोरग ८ गंधर्व पन्नी १० पान पनी ११ ईसीवाय १२ भूय वाय १३ कन्दिय १४ महा कन्दिय १५ कोदण्ड १६ पयंग देव ।
२ वासा द्वार - रत्नप्रभा नरक के ऊपर का १ हजार योजन का जो पिण्ड है उसमें १०० योजन ऊपर १०० योजन नीचे छोड़ कर ८०० योजन में ८ जाति के वायव्यन्तर देव रहते हैं और ऊपर के १०० यो० पिएट में १० यो० ऊपर, १० यो० नीचे छोड़कर ८० यो० में 8 से १६ जाति के व्यन्तर देव रहते हैं । ( एकेक की यह मान्यता है कि ८०० यो० में व्यन्तर देव और ८० यो० में १० जृम्भका देव रहते हैं । )
३ नगर द्वार - ऊपर के वासाओं में वायव्यन्तर
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