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(६८४)
थोकडा संग्रह।
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आत्मा एक है । ( एक समान स्वभाव अपक्षा ) ३ काल ४ निक्षेप और सामान्य को माने, विशेष न माने ।
३ व्यवहार नय-अन्तःकरण ( आन्तरिक दशा) की दरकार ( परवाह ) न करते हुवे व्यवहार माने जैसे जीव को मनुष्य तिर्यच, नरक, देव माने । जन्म लेने वाला मरने वाला आदि, प्रत्येक रूपी पदार्थों में वर्ण, गन्ध श्रादि २० बोल सत्ता में हैं परन्तु बाहर जो दिखाई देवे केवल उन्हें ही माने जैसे हंस को श्वत, गुलाब को सुगन्धी शर्कर को मीठी भाने । इसके भी शुद्ध अशुद्ध दो मेद सामान्य के साथ विशेष माने, ४ विक्षेप, तीन ही काल की बात माने।
४ ऋजु सूत्र-भूत, भविष्य की पर्यायों को छोड़ कर केवल वर्तमान-सरल पर्याय को माने वर्तमान काल, भाव निक्षेप और विशेष को ही माने जैसे साधु होते हुवे भोग में चित्त जाने पर भोगी और गृहस्थ होते हुवे त्याग में चित्त जाने से उसे साधु माने ।
ये चार द्रव्यास्तिक नय हैं । ये चारों नय समकिा, देश व्रत, सर्व व्रत, भव्य अभव्य दोनों में होवे परन्तु शुद्धोपयोग रहित होने से जीव का कल्याण नहीं होता।
५ शब्द नय-समान शब्दों का एक ही अर्थ करे विशेष, वर्तमान काल और भाव निक्षेप को ही माने । लिंग भेद नहीं माने । शुद्ध उपयोग को ही माने जैसे शक्रे.
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