________________
ज्योतिषी देव विस्तार ।
( ६६५)
योजन ऊंचे पर ११० यो में और ४५ लाख यो के विस्तार में ज्यों देवों के विमान हैं जैस-७६० यो० ऊंचे पर तारा
ओंके विमान,यहाँ से १०यो ऊंचे पर सूर्य का यहाँ से८०यो. ऊँचा चन्द्र का, यहाँ से ४ यो० ऊँवा नक्षत्र के यहाँ से ४ यो० ऊँचा बुध का यहाँ से ३ यो० शुक्र का यहाँ से ३ यो. वृहस्पती का, ३ यो० मंगल का और यहाँ से ३ यो० ऊँचा शनिश्चर का विमान है सर्व स्थानों पर ताराओं के विमान ११० योजन में हैं।
३ राजधानीतीचे लोक में असंख्यात राजधानिये
४सभा द्वार ज्योतिषी के इन्द्रों के भी ५-५ सभा हैं । ( भवनपति समान)
द्वार-ताराओं के शरीर पंचवर्णी है । शेष ४ देवों का वर्ण मुवर्ण समान हैं ।
६ वस्त्र द्वार -सर्व वर्ण के सुन्दर, कोमल वस्त्र सत्र देवताओं के होते हैं।
७चिन्ह हार-चन्द्र पर चन्द्र मंडल, सूर्य पर सूर्य मंडल, एवं सर्व देवताओं के मुकुट पर अपना अपना चिन्ह है। ____८ विमान चौड़ाई और ६ जाड़ाई द्वार-एक यो० के ६१ भागों में से ५६ भाग (३१ यो० ) चन्द्र विमान की चौड़ाई, ४८ भाग सूर्य विमान की, दो गाउ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org