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गर्भ विचार ।
से सात धातु उत्पन्न होती हैं । इनमें-१ रसी ( राध) २ लोही ३ मांस ४ हड्डी ५ हड्डी की मजा ६ चमे ७ वीर्य
और नसा जाल एवं सात मिल कर दूसरी शरीर पर्या अर्थात सूक्ष्म पुतला कहलाता है । छः पर्या बंधने के बाद वह बोजक (वीर्य) सात दिवस में चावल के धोवन समान तोलदार हो जाता है। चौदहवें दिन जल के परपोटे समान आकार में आता है । इकवीश दिन में नाक के श्लेश्म के समान और अठावीश दिन में अड़तालीश मासे वजन में हो जाता है । एक महिने में घर की गुठली समान अथवा छोटे आम की गुठली समान हो जाता है । इसका वजन एक करखण कम एक पल का होता है पल का परिमाण-सोलह मासे का एक करखण और चार करखण का एक पल होता है । दूसरे महिने कच्ची केरी समान, तीसरे महिने पक्की करी (आम) समान हो जाता है । इस समय से गर्भ प्रमाणे माता को डहोला ( दोहद-भाव ) उत्पन्न होने लगता है। और यह कर्म कलानुसार फलता है । इस के द्वारा गर्भ अच्छा है या बुरा इसकी परीक्षा होती है। चोथे महिने कणक के पिण्डे के समान हो जाता है इस से माता के शरीर की पुष्टि होने लगती है । पांचवें महिने में पांच अङ्कुरे फूटते हैं जिनमें से दो हाथ,दो पांव,पांचवा मस्तक, छठे महीने रुधिर, रोम नख और केश की वृद्धि होने लगती है । कुल ३॥
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