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साधु-समाचारी।
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भी गुरुजनों आदि को आमन्त्रित करने के
बाद सावे । (६) इच्छाकार-[पात्रलेपादि] प्रत्येक कार्य में गुरु
की इच्छा पूछ कर करे। (७) मिच्छाकार-पत्किचित् अपराध के लिये गुरु
समक्ष आत्म निंदा करके 'मिच्छामि दुकाई दे। (८) तहकार-गुरु के वचन को सदा 'तहत्त' प्रमाण
कह कर प्रसन्नता से कार्य करे। (8) अन्भुठणा-गुरु, रोगी, तपस्वी श्रादि की
ग्लानता (घृणा) रहित वैयावच्च करे।। (१०)उपसंचया-जीवन पर्यन्त गुरुकुल वास करे (गुरु आज्ञानुसार विचरे )
दिन कृत्य चार पहर दिन के और चार पहर रात्रि के होते हैं। दिन तथा रात्रि के चोथे भाग को पहर कहना ।
(१) दिन निकलते ही प्रथम पहर के चोथे भाग में सर्व उपकरणों का पडिलेहण करे (२) तत्पश्चात् गुरु को पूछे कि मैं वैयावच्च करूं अथवा सज्झाय ? गुरु की आज्ञा मिलने पर वैसा ही १ पहर तक करे। (३) दूसरे पहर में ध्यान (किये हुवे स्वाध्याय की चिंतवन) करे (४) तीसरे पहर में गोचरी करे. प्रासुक आहार लाकर गुरु को बतावे. संविभाग करे और बड़ों को आमन्त्रित करके प्रहार करे
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