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गर्भ विचार ।
(४४५)
विंटी हुई रसहरणी नाडी खुल जाती है | जन्म होने के समय यदि माता और गर्भ के.पुन्य तथा आयुष्य का बल होवे तो सीधे मार्ग से जन्म हो जाता है। इस समय कितने ही मस्तक तरफ से अथवा कितने ही पैर तरफ से जन्म लेते हैं। परन्तु यदि माता और गर्भ दोनों भारी कर्मी होवे तो गर्भ टेड़ा गिर जाता है । जिससे दोनों की मृत्यु हो जाती है । अथवा माता को बचाने के निमित पापी गर्भ के जीव पर, बेध कर छुरी व शस्त्र से खण्ड २ करके जिन्दगी पार की शिक्षा देते हैं। इसका किसी को शोक, संताप होता नहीं। ___ सीधे मार्ग से जन्म लेने वाले सोने चान्दी के तार समान है । माता का शरीर जतरड़ा है जैसे सोनी तार खंचता है वैसे गर्भ खिंचा कर ( करोड़ों कष्टों से ) बाहर निकल आता है । अर्थात् नव महीने जो पीड़ा होती है उससे क्रोड़ गुणी पीड़ा जन्म के समय गर्भ को होती है। मृत्यु के समय तो कोड़ाकोड़ गुणा दुख गर्भ को होता है। यह दुख वणतातीत है। ये सर्व खुर के किये हुवे पुन्य पाप के फल हैं जो उदय काल में भोगे जाते हैं । यह सर्व मोहनीय कर्म का संताप है।।
ऊपर अनुसार गर्भ काल, गर्भ स्थान तथा गर्भ में उत्पन्न होने वाले जीव की स्थिति का विवेचन आदि तंदुल वियालिया पइना, भगवती जी अथवा अन्य ग्रन्था.
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