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खराडा जायणा।
( ५३३)
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की ३२ यो० की चूलिका के चारों ओर ( तरफ ) लिपटा हुवा है। वेदिका, वन खण्ड, ४ सिद्धायतन, १६ वावडिए, मध्य में ४ महल । सर्व पूर्ववत् । . ___ मध्य की चूलिका ( मेरुकी ) मूल में १२ यो०, मध्य में ८ यो०, ऊपर ४ यो० का विस्तार वाली । ४० यो० ऊंची है । वैडूर्य रत्न मय है । वेदिका वनखण्ड से विटायी हुई (लिपटी हुई ) है मध्य में १ सिद्धायतन है। ___ पांडक वन की ४ दिशा में ४ शिला है। पंडू, पंडूबल, रक्त और रत्न कंबल । प्रत्येक शिला ५०० योजन लम्बी२५०यो०चौडी४यो जाडी अर्धचन्द्र श्राकार वत् है । पूर्व पश्चिम शिलाओं पर दो २ सिंहासन हैं । जहां महाविदेह के तीर्थंकरों का जन्माभिषेक भवनपति. व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवता करते हैं। उत्तर दक्षिण में एके सिंहासन है जहां भरत ऐरावर्त के तीर्थकरों का जन्माभिषेक ४ निकाय के देवता करते हैं।
मेरु पर्वत के ३ करंड हैं। नीचे का १००० यो० पृथ्वी में, मध्य में ६३००० यो० पृथ्वी के ऊपर और ऊपर का ३६००० यो० का; कुल १ लाख योजन का शास्वत मेरु है। __ (५) कूट द्वार-४६७ कूट पर्वतों पर और ५८ क्षेत्रों में हैं ऊंचायो० मूल वि० ऊँचा वि० चूल हेमवन्त पर ११ ५०० ५०० २५०
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