________________
५२ अनाचार ।
(६२१)
(१६) गृहस्थों की सुख श ता पूछ कर खुशामद करे तो (१७ दर्पण में अंगोपांग निरखे तो
, (१६) चोपड शतरञ्ज आदि खेल खेने तो , (१६) अर्थोपाजन जुगार सट्टा आदि करे तो , , (२०) धूर आदि निमित्त छत्री आदि रक्खे तो,, (२१) वैद्यगिरि करके प्राजीविका चलावे तो,,, (२२) जूतिये मोजे आदि पैरो में पहिने तो ,, ,
(२३) अग्नि काय आदि का आरंभ (ताप आदि) करे तो
(२४) गृहस्थों के यहां गादी तकियादि पर बैठे तो ,,,, (२५) , , पलंग, खाट आदि , ,
(२६) मकान की आज्ञा देने वाले के यहां से (शय्यान्तर ) बहोरे तो (२७) विना कारण गृहस्थों के यहां बैठ कर कथादि
करे तो, (२८), , शरीर पर पीठी, मालिस आदि
करे तो , (२६) गृहस्थ लोगों की वैयावच्च ( सेवा ) आदि
करे तो , (३०) अपनी जाति कुल आदि बता कर आजीविका
करे तो ,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org