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थोकडा संग्रह "
(२३) कोहे - क्रोध कर के (२४) माने - मान कर (२५) माये - - कपट कर के (२६) लोभ-- लोभ वर के लिया हुवा |
( ६२६ )
(२७) पुण्यं पच्छं संयुव - पहेले तथा बाद में देने वाले की स्तुति कर के लिया हुवा ।
[२८] विजा--गृहस्थों को विद्या बताकर लिया हुवा [२६] मंत-मन्त्र तन्त्र आदि
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[३०] चून-- रसायन आदि ( एक वस्तु में दूसरी वस्तु मिलाकर तीसरी वस्तु बनाना ) सिखाकर लिया हुवा |
[३१] जोगे--लेप, वशीकरण आदि बताकर लिया हुवा |
[३२] मूल कम्मे - गर्म पात आदि की दवा बता कर लिया हुवा ऊपरोक्त दोषों में से प्रथम १६ दोष' उद्गमन' अर्थात् भद्रिक श्रावक भक्ति के कारण अज्ञान साधुओं को लगाते हैं। पीछे के १६ दोष उत्पात ' हैं । ये मुनि स्वयं लगा लेते हैं ।
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अब दश दोष नीचे लिखे जाते हैं जो साधु और गृहस्थ दोनों के प्रयोग से लगाये जाते हैं ।
(३३) संकिए -- जिसमें साधु तथा गृहस्थ को शुद्धता ( निर्दोषता ) की शङ्का होवे । [३४] मंक्खिए--वहोराने वाले के हाथ की रेखा अथवा बाल सचित से भीजे हुवे होवे तो ।
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