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आहार के १०६ दोष ।
[७] अन्य किसी प्राणी को उलांघ कर जाने से । [८] साधु को आया हुवा जान कर गृहस्थ संघटे
[सचितादि] की चीजों को आगे पीछे कर देवें
वहां से गोचरी करने पर । [6] दान निमित बनाया हुवा । [१०] पुन्य निमित बनाया हुवा । [११] रंक-भिखारी के लिए बनाया हुवा । [१२] बाबा साधु के लिए बनाया हुवा आहार लेवे तो। [१३] राज पिएड [रईसानी-बलिष्ट आहार लेवे तो। [१४] शम्यांतर-पिंड मकान दाता के यहां से लेवे तो। [१५] नित्य-पिंड हमशा एक ही घर से बाहा लेवे तो। (१६) पृथ्वी आदि सचित्त चीजों से लगा हवा लेवे
.. तो, (१७) इच्छा पूर्ण क ने वाली दानशालाओं से
से आहार ,,,, (१८) तुच्छ वस्तु ( कम खाने में आये और अधिक
पाठनी पड़े) गोचरी में लेवे तो। (१६) आहार देने के पहिले सचित्त पानी से हाय
धोया होवे तथा वहोराने के बाद सचित्त
पानी से हाथ धोवे तो। (२०) निषिद्ध कुल-(मद्य मांसादि अभक्ष्य भोजी)
का आहार लेवे तो
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