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भ्रष्ट प्रवचन ।
( ६१६)
कपाय, पात रौद्र राग द्वेष में मन न प्रवतोवे ।
२ वचन गुप्ति के ४ भेद-(१) द्रव्य से चार विकथा न करे (२) क्षेत्र से समग्र लोक में (३) काल से जाव जीव तक (४) भाव से सावध ( राग द्वेष विषय कषाय युक्त) वचन न बोले ।
३ काया गुप्ति के ४ भेद-(१) द्रव्य से शरीर की शुश्रूषा ( सेवा-शोभा ) नहीं कर (२) क्षेत्र से समस्त लोक में (३) काल से जाव जीव तक (४) भाव से सावध योग (पाप कारी कार्य ) न प्रवर्ताचे ( न सेवन को )
॥ इति अष्ट प्रवचन सम्पूर्ण ॥
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