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संजया ( संयति ) |
२ परिहार विशुद्ध के
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४ सामा० छेदो० ५ सूक्ष्म संपराय
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७ यथा ख्यात
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उत्कृष्ट
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जघन्य
उत्कृष्ट
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ज० उ०
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अनन्त गुणा,”
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( ६११ )
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परस्पर तुल्य
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१६ योग द्वार - ४ संयति, सयोगी और यथा • सयोगी
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और योगी ।
१७ उपयोग द्वार - सूक्ष्म में साकार उपयोगी होवे शेष चार में साकार - निराकार दोनों ही उपयोग वाले होवें । १८ कषाय द्वार - ३ संयति संज्वलन का चोक ( चारों की कषाय ) में होवे सूक्ष्म० संज्ज० लोभ में होवे और यथा० कषायी ( उपशान्त तथा क्षीण ) होवे
१६ लेश्या द्वार - सामा० छेदो० में ६ लेश्या परि० में ३ शुभ लेश्या सूक्ष्म० में शुक्ल लेश्या यथा० में १ शुक्ल लेश्या तथा अलेशी भी होवे ।
२० परिणाम द्वार-तीन संयति में तीनों ही परि णाम उनकी स्थिति हायमान तथा वर्धमान की ज० १ उ० ७ ० मु० की, अवस्थित की ज० १ समय उ० ७ समय की, सूक्ष्म० में २ परिणाम ( हायमान वर्धमान ) इनकी स्थिति ज उ० अं० मु० की, यथा० में २ परिणाम; वर्धमान ( ज० उ० ० मु० की स्थिति ) और श्रवस्थित ( ज० १ समय उ० देश उणा कोड़ पूर्व की स्थिति ) ।
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