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नियंठा।
( ५६५)
एवं १० कल्पों में से प्रथम का और अन्तका तीर्थ. कर के शासन में स्थित कल्प होते हैं शेष २२ तीर्थकर के शासन में अस्थित कल्प हैं उक्त १० कल्पों में से ४.७ ६.१० एवं ४ स्थित कल्प हैं और १२.३-५.६.८ स्थित कल्प है।
स्थिवर कल्प-शास्त्रोक्त वस्त्र-पात्रादि रक्खे । - जिन कल्पज. २ उ. १२ उपकरणं रक्खे ।
वल्पातीत केवली, मनः पर्यव, अवधि ज्ञानी, १४ पूर्व धारी, १० पूर्व धारी, श्रुत केवली और जातिस्मरण ज्ञानी ।
पुलाक-स्थित, अस्थित और स्थिवर करपी होवे ।
वकुश और पडिसेवणा नियंठा में कल्प ४, स्थित, अस्थित, स्थिवर और जिन कल्पी।
कपाय कुशील में ५ कल्प-ऊपर के ४ और कल्पातीत निग्रंथ और स्नातक-स्थित, अस्थित और कल्पातीत में होवे।
५चरित्र द्वार-चारित्र ५ हैं । सामायिक २ छेदोपस्थापनीय ३ परिहार विशुद्ध ४ सूक्ष्म संपराय ५ यथाख्यात पुलाक, वकुश, पडिसेवणा में प्रथम दो चारित्र । कषाय-कुशील में ४ चारित्र और निग्रंथ, स्नातक में यथाख्यात चारित्र होवे । . ६ पडिसेवण द्वार-मूल गुण पडि । ( महाव्रत में
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