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थोकडा संग्रह ।
शक्तिवन्त इन्द्रादिक लोक पाल प्रमुख रूपवान देदीप्यवान् वंछित भोग संयोग में प्रवत हुवा जघन्य १० हजार वर्ष उत्कृष्ट ३१ सागरोपम एवं अनन्ती वार भोगा । इन्द्र महाराज के रूप में एक भव के अन्दर ७ पल्योपम की देवी, बावीश कोड़ा क्रोड़, पिच्चाशी लाख कोड़, एकोत्तर हजार कोड़, चार से अठावीश कोड़, सत्तावन लाख चौदह हजार दोसो अट्याशी ऊपर पांच पल्य की ८, इतनी देवियों के साथ भोग करने पर भी तृप्ति न हुई । मनुष्य के अन्दर स्त्री पुरुष रूप में हुवा । देव कुरू उत्तर कुरू के अन्दर युगल युगलानी हुवा जहां महामनोहर रूप मनवांछित सुख भोगे । दश प्रकार के कल्प वृक्षों से सुख भोगे । स्त्री पुरुष का क्षण मात्र के लिये भी वियोग नहीं पड़ा।३ पन्योपम तक निरन्तर सुख भोगे। हरिवास रम्यक वास में २ पल्योपम, हेमवय हिरण्य वय क्षेत्र के अन्दर १ पल्य तक, छप्पन अन्तरद्वीपा के अन्दर पल्योपम का असंख्यातवां भाग, युगल युगलानी रूप में अनंती बार स्त्री पुरुष के रुप में खेला परन्तु आत्म तृप्ति नहीं हुई। चक्रवर्ती के घर स्त्री रत्न के रुप में लक्ष्मी समान रुप अनंती वार यह जीव पाकर खला, परन्तु तृप्त नहीं हुवा । वासुदेव भंडलीक राजा व प्रधान व्यवहारीया के घर स्त्री रुप में मनोज्ञ सुखों में पूर्व क्रोडादिकं के आयुष्य पने प्रवर्त हुवा । यही जीव मनुष्य के अन्दर कुरुपवान, दुर्भागी
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