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छ लेश्या।
(४८५) सिक,निष्ठुर परिणामी, जीव हिंसा, सुग्या रहित करने वाला
और अजितेन्द्री श्रादि लक्षण कृष्ण लेश्या के हैं। नील लेश्या के लक्षणः-ईविन्त, अमृषावन्त, तप रहित, मायावी पाप करने में शर्माय नहीं, गृधी, धूतारा, प्रमादी रस-लोलुपी, माया का गवेषी, प्रारंभ का अत्यागी, पाप के अन्दर साहसिक ये लक्षण नील लेश्या के हैं। कापोत लेश्या के लक्षणः-वक्र भाषी, वक्र कार्य करने वाला, माया करके प्रसन्न होवे, सरलता रहित, मुंह पर कुछ और पीठ पीछे कुछ, मिथ्या व मृषा भाषी, चोरी मत्सर का करने वाला,आदि । तेजो लेश्य के लक्षण:-मर्यादा वन्त, माया रहित, चालता रहित, कुतुहल रहित, विनय वन्त, जितेन्द्री, शुभ योग वंत, उपध्यान तप सहित, दृढ धर्मी, प्रिय धर्मी, पाप से डरने वाला आदि । पद्म लेश्या के लक्षण:-क्रोध मान माया लोभ को जिसने पतले ( कम ) किये हैं, प्रशांत चित्त, श्रात्म निग्रही, योग उपध्यान सहित, अल्प भाषी, उपशांत, जितेन्द्री । शुक्ल लेश्या के लक्षणः-आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, से सर्वथा रहित, धर्म ध्यानं, शुक्ल ध्यान सहित, दश प्रकार की चित्त समाधि सहित, आत्मनिग्रही, आदि ।
८ लेश्या स्थानक द्वार:-असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी के जितने समय होते हैं तथा असंख्यात लोक के जितने आकाश प्रदेश होते हैं उतने लेश्या के स्थानक जानना।
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